शनिवार, 5 मई 2012

गजलकार परिचय शृखंला भाग-2


आरसीप्रसाद सिंह


मानलजाइत अछि जे जीवन झा केर बादमैथिलीमे आरसी प्रसाद सिंहगजल लिखला। हिनक जन्म इ 19अगस्त1911मेसमस्तीपुरक "एरौत" नामकगाममे भेल। मैथिलीमे लिखबासँपहिने ई हिन्दीमे ख्यातिप्राप्त भए चुल छलाह। हिन्दीमेहिनक "कागजकी नाव,मधु-सन्देश,बसंतकोकिल,याद,अभेद,वर्षा-गीत,क्योंप्यार करता हूँ,मनारहा हूँ उन्हें,मौनरहने दो,उल्टीनगरी,स्वर्णकिरण,आरसी"" नन्ददास""संजीवनी"नामककाव्य ग्रंथ अछि तँ मैथिलीमे"माटिकदीप "" पूजाकफूल ""सूर्यमुखी"काव्यग्रंथ अछि। इ.1984मे"सूर्यमुखीलेल हिनका मैथिली लेल साहित्यअकादेमी पुरस्कार भेटल। हिनकमृत्यु इ.15नवम्बर1996मेभेल। इहो जीवने झा जकाँ एक-दूटागजल लिखला। प्रस्तुत अछि हिनक"गुलाबीगजल "|



गुलाबीगजल-आरसीप्रसादसिंह

अहाँकआइ कोनो आने रंग देखइ छी
बगएअपूर्व कि‍छु वि‍शेष ढंग देखइछी


चमत्‍कारकहू, आइकोन भेलऽ छि‍ जग मे
कोनोवि‍लक्षणे ऊर्जा-उमंगदेखइ छी


बसातलागि‍ कतहु की वसन्‍तक गेलऽि‍छ,
फुललगुलाब जकाँ अंग-अंगदेखइ छी


फराकेआन दि‍नसँ चालि‍ मे अछि‍ मस्‍ती
मि‍जाजि‍दंग, कीबजैत जेँ मृंदग देखइ छी


कमान-तीरचढ़ल, आओरकान धरि‍ तानल
नजरि‍पड़ैत ई घायल,वि‍हंगदेखइ छी


नि‍सासवार भऽ जाइछ बि‍ना कि‍छु पीने
अहाँकआँखि‍मे हम रंग भंग देखइ छी

मयूरप्राण हमर पाँखि‍ फुला कऽ नाचय
बनलवि‍ऽजुलता घटाक संग देखइ छी।।


लगैछरूप केहन लहलह करैत आजुक,
जेनाकि‍ फण बढ़ौने भुजंग देखइ छी


उदारपयर पड़त अहाँक कोना एहि‍ ठाँ
वि‍शालभाग्‍य मुदा,धऽरेतंग देखइ छी


कतहुने जाउ,रहूभरि‍ फागुन तेँ सोझे
अनंगआगि‍ लगो,हमअनंग देखइ छी

ईगजल शिव कुमार झा जीक सौजन्यसँअछि जे की एकरा अनचिन्हार आखरपर दू साल पहिने प्रस्तुत केनेरहथि।

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